तारों के संग...
तारों के संग...
अभिमानी रात उखड़े -२ मन
चाँद छेड़ दी बड़ी अदब से
सारी रात गुज़ारी
तारों के संग लड़ झगड़ के......।
केसरी रंग की सपने
सपनों मे तेरी इंद्रधनुषी चाहत
चाहत की रंगत अधरों मे लिऐ
तकिये मेंं सपने छुपाऐ
सारी रात गुज़ारी
तारों के संग लड़ झगड़ के.....।
कोहरे की धुआँ उठते रहे
शज़र शाखाऐं उमड़ते रहे
प्रिय तुम मुस्काते आँखों में
यादों की परिंदे छोड़ गऐ
सारे परिंदों को हाथों में थामे
सारी रात गुज़ारी
तारों के संग लड़ झगड़ के....।
ना जाने बेख़ुदी में
उकेरा है वो घाव तुमने
चुभन की जलन जो सताये हमें
भूल कर भी भुला ना पाऐ
मतलबी अँधेरे को गले लगाऐ
सारी रात गुज़ारी
तारों के संग लड़ झगड़ के.....।