किस्सा-ए-गम
किस्सा-ए-गम
किस्सा-ए-गम ज़माने से मिले,
ख़ामोश सफर में जख्म मेरे दिवाने से मिले।
वो बदखू ज़माने को कहता है,
तुम्हें गम-ए-किस्मत लिखवाने से मिले॥
ये जाम़-ए-हकीकत तसव्वुर का,
खामोश लबों पे भी फसाने से मिले।
इश्क उसकी चाहत है मेरा भ्रम,
दिल लगाने वाले, कितने बहाने से मिले॥
मेरी किस्म है यायावर,
तभी यार मुझे सुहाने से मिले।
किस्सा-ए-गम ज़माने से मिले,
ख़ामोश सफर में जख्म मेरे दिवाने से मिले।
वो बदखू ज़माने को कहता है,
तुम्हें गम-ए-किस्मत लिखवाने से मिले॥
ये जाम़-ए-हकीकत तसव्वुर का,
खामोश लबों पे भी फसाने से मिले।
इश्क उसकी चाहत है मेरा भ्रम,
दिल लगाने वाले, कितने बहाने से मिले॥
मेरी किस्म है यायावर,
तभी यार मुझे सुहाने से मिले।
ढूंढती रही कहीं तोहफे में तराने से मिले,
मगर जिल्लत सफर में, उलाहने से मिले॥
नए शहर में यार कुछ पुराने से मिले,
हर जख़्म ज़माने को आजमाने से मिले।
शौक है मुझे जख़्म-ए-इश्क का,
फिर चाहे गम हर पैमाने पे मिले॥
ढूंढती रही कहीं तोहफे में तराने से मिले,
मगर जिल्लत सफर में, उलाहने से मिले॥
नए शहर में यार कुछ पुराने से मिले,
हर जख़्म ज़माने को आजमाने से मिले।
शौक है मुझे जख़्म-ए-इश्क का,
फिर चाहे गम हर पैमाने पे मिले॥