मन्नत के धागे
मन्नत के धागे
मन्नतों के धागों से बाँध लिया है तुझको हाथ की कलाई से
एक रिश्ते सा तू अब मेरे साथ-साथ चलता है
मेरे होंठों पे आ जाता है ख़ुशी बनकर
जब भी तू मुझे अपनी याद में याद करता है
और आँखों से पिघलता है मोम की तरह
जब भी तू अपने आप से मुझे दूर करता है
मेरी आँखों से मल्हार की तरह रोज़ बह सा जाता है तू
ऐसे जैसे सर से मेरे कोई बलायें उतारता है
तावीज़ के धागों में कुछ उलझ सा जाता है तू
ऐसे की जैसे मेरी कलाई से अपनी कलाई छुड़ाता है तू
सपने में भी करवट लेने से डरती हूँ आजकल
की कहीं मेरे सपनों में भी कहीं भटक ना जाए तू
तेरे अहसास को ओढ़ के सो जाती हूँ आजकल
की कहीं मुझे छोड़ के कहीं चला ना जाए तू