बदलती रही स्त्रियाँ
बदलती रही स्त्रियाँ
मेरे जीवन में
आती-जाती रही हैं
ना जाने कितनी ही स्त्रियाँ
असंभव था मेरे लिए अकेले रख पाना
उन सारी स्त्रियों का लेखा-जोखा
तैयार कर पाना उन तमाम स्त्रियों के
मेरे जीवन में आगमन-प्रस्थान की सूची
मुझसे उन तमाम स्त्रियों ने प्रेम किया
हाँ भले ही भिन्न रही हों स्त्रियाँ
भिन्न रहे हों उनके संस्कार
भिन्न रही हों उनकी सभ्यताएं
और उनकी परम्पराएं
गाँव की रही हों या शहर की
देश की रही हों या विदेश की
कस्बाई रही हों या शाही
उतना ही प्रेम किया
उतनी ही सहजता से किया
उतनी ही व्याकुलता से किया
उतनी ही उत्तेजनाओं के साथ किया
उतनी ही गहराईयों में उतरकर किया
पर यह क्या
हक्काबक्का भौचक्का हुआ जाता हूँ मैं
बतला नहीं सकता
आखिर उन स्त्रियों के लिए
प्रेम के क्या मायने रहें होंगे
वे आती जाती रही
ठीक वैसे ही जैसे
लोकतंत्र में बदलती है सरकारें
धरती पर बदलते हैं मौसम
दिन के बाद उतरती है रात
रात के बाद चढ़ते हैं दिन
साँप छोड़ जाते हैं अपने केचुए
रसास्वादन कर भँवरें
छोड़ जाते हैं उदास फूल