बेटा
बेटा
बेटे....
हर चेहरे की ख़ुशी का नया आयाम,
गरीबों के घर बजती बधाइयों की वजह ये बेटे..
समाज में इक अजीब ही रूपरेखा लिए होते हैं बेटे...
नाजुक होती होगीं बेटियाँ पर नाजुकता की इक नई पहचान होते हैं बेटे...
बचपन बीत जाता है लाड़ प्यार में,,
बड़े हुए तो घर से दूर होने में प्यार दिखाते है बेटे..
बेटियों को तो इक घर से दूसरे घर विदा करते है सब पर नहीं समझता कोई जिम्मेदारी के नाम पर अपने घर से ही जुदा किए जाते हैं बेटे...
मजबूरी के नाम पर हर तक़लीफ़ सहते है..माँ पापा से बात करते हुए "सब ठीक है कहकर" न जाने कितने दर्द छिपाते है बेटे..
हर उलझन नया दर्द लाती होगी जीवन में..
फिर भी सब अनजान और दूर उनके इस कठिन समय में,,
मैं नहीं खाऊंगा ये .."क्या बना लिया है"
से धीरे धीरे कुछ भी बना लो सब खा लेता हूँ में रूपांतरित होते बेटे...
हर परिवार की रोशनी होती है बेटे शायद इसी वजह से सबसे से ज्यादा खुद को तपाते है बेटे!!!!