ज़िम्मेदारियाँ
ज़िम्मेदारियाँ
चाहूं भी तो कुरबान
जान करने नहीं देंगी
मेरी ज़िम्मेदारियाँ
मुझे मरने नहीं देंगी !
बन जाउं महादेव
ऐसी इच्छा नहीं
ज़माना हलाहल से
कहीं अच्छा नहीं
हलाहल को मेरे गले से
उतरने नहीं देंगी
मेरी ज़िम्मेदारियाँ
मुझे मरने नहीं देंगी !
ना बनता मैं मानव
तो क्या बात थी
तकदीर में मगर
स्याह ये रात थी
अवतार किसी और का
धरने नहीं देंगी
मेरी ज़िम्मेदारियाँ
मुझे मरने नहीं देंगी !
ऐ ज़िम्मेदारियों !
अगर तुम यहां ना होतीं
मर जाता मैं
जीते जी
ज़िंदगी फना ना होती
चाहत पर मेरी 'निल'
कर गुज़रने नहीं देंगी
मेरी ज़िम्मेदारियाँ
मुझे मरने नहीं देंगी...!