दिल एक आशियाना
दिल एक आशियाना
दिल एक आशियाना है
ये सबका मानना है
मानव स्वभाव ही तरल है
पर समझना बहुत ही सरल है
चाहते हुए भी कुछ कर नहीं पाते
बिलखते, रोते और अपने आपको दुखी पाते
सोचते कुछ और करते कुछ और
जाना होता है बहुत दूर
अपने पीछे छूट जाते हैं
बहुत कष्ट दे जाते हैं
हम तहे दिल से माफ़ी मांगना चाहते हैं
पर समय ऐसे मौके नहीं देता है
मुझ से ऐसी गलती क्यों हो गयी?
मुंह से ऐसी बात क्यों निकल गयी?
मेरा इरादा बिलकुल दिली चोट पहुंचाना नहीं था
बस वो मेरे मन की बात नहीं समझना चाहता था
मेरा मन द्रवित हो गया
मन में एक कुंठित भाव अहसास करा गया
हम सब एक कच्चे धागे से बंधे हैं
पर क्या करें समय की पाबन्दी से हम अंधे हैं
समय भले ही निकल चुका है
पर समां वफ़ा का है
कुछ लफ्ज़ उन तक पहुँचने ही चाहिए
मेरी मंशा उजागर होनी ही चाहिए