मेरा बचपन
मेरा बचपन
आज मैंने मुड़ कर बचपन को देखा,
किलकारियाँ, मस्तियां, रूठना, मनाना,
यही था जीवन का ताना-बाना।
कल्पवृक्ष और कामधेनु सा,
युग आ गया मेरे कदमों में,
स्वर्ग सा सुख छा गया,
जीवन के हर कोने में।
नये-नये खेल खिलौने,
रंग-बिरंगे सुंदर कपड़े,
लगा चुके सबके अबांर,
फिर भी मन में था एक गुबार।
पापा! अब मैं हो गया हूँ बड़ा,
दे दो मुझे मांगने का अधिकार,
मैं मांगू तब तुम कुछ दो,
जानू मैं तब खुशी का मोल।
कब तक तुम साथ चलोगे मेरे,
कब तक तुम फूल बिछाओगे मेरे पथ में,
मैं भी जीवन को जीना सीखूं,
तुम से भी आगे जाना चाहू।
स्वयं अपनी पहचान बनूं मैं,
तेरी खुशी में मेरी खुशी,
मेरी खुशी में तेरी खुशी,
तब हो जायेगी एकाकार।
दो अश्रु ढलक गये पितृ नयन से,
माँ ने लगा लिया मुझे गले से,
यादों के झरोखों से मैंने
बचपन को ऐसा देखा।