ग़ज़ल
ग़ज़ल
गज़ल/गीत
१२१२२. १२१२२. १२१२२. १२१२२
तुम्हारी नज़रों का ये असर है
हमारी हालत सुधर गई है
हमारी साँसों मे तेरी खुशबू
बहार बन कर बिखर गई है।
जमाने भर में हसीन ऐसा
दिखा नहीं जो तुम्हारे जैसा
तुम्हारी आँखों में डूबने से
हमारी रंगत निखर गई है।
कहो तो कह दें है प्यार तुम से
मेरी वफ़ा का करार तुम से
तुम्हीं से लहज़ों में ताजगी है
तुम्हीं से चाहत सँवर गई है।
तेरी मुहब्बत में होश कम है
मिज़ाज़े आलम भी अब नरम है
जरा तबीयत हरी हुई है
जरा हरारत उतर गई है।
न कोई घर है न है ठिकाना,
तुम्हारी यादों मे आशियाना
तुम्हारे ख्वाबों के सिलसिलों से
वो नींद जाने किधर गई है।
चलो कि अब हम ये काम कर लें
दिलों की चाहत को आम कर लें
जहाँ से देखो हटी है नफ़रत
वहाँ मुहब्बत उभर गई है
कोई जमीं पे कोई फ़लक में
हैं कितनी जाति हैं कितनी रस्में
जो दूरियाँ लिख रहीं रवायत
फ़िजाँ को घायल वो कर गई हैं।