नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे !
नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे !
सुस्वाधीनता के दीये के तले भी पराधीनता दीप-पद नित्य चूमे।
दुराचारियों से हुआ भ्रष्ट शासन पिये तंत्र-मदिरा ये मदमत्त झूमे
जलो नौजवानों बुझे दीप क्यों हो? नवल-ज्योति भर अधमरा मुल्क थामो
यही नाद गूँजे धरा पर गगन में नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे।
भगवा मेरा चाँद-तारे तुम्हारे
चले जा रहे हैं किनारे-किनारे।
कहीं पर बुतों को है पूजा हमीं ने कहीं कब्र पर चादरों का मकाँ है
अल्लाह पूछे शिवाले में आकर बता मानवों के कहाँ पर निशाँ हैं।
कहाँ खो गए हर्फ़ गीता कुराँ के सभी के दिलों बीच नफ़रत जवाँ है
हमीं ने गढ़े जो कभी साथ मिलकर बता दे! कहाँ है कहाँ हैं, कहाँ हैं?
सजल नैन खोले महाकाल बोले व्यथित हूँ कहो क्या बताऊँ तुम्हें मैं?
ये इंसान कैसे हुआ है दरिंदा कहो किस तरह से जताऊँ तुम्हें मैं?
शब्दों से खिलवाड़ करता रहा है कहाँ पढ़ सका सत्य जो भी लिखा है?
खुली आँख से धर्म देखे कहाँ से देखा है जो बंद आँखों दिखा है।
जो तेरा बशर साथ भाला रखे है सनातन चले संग शमशीर लेकर
कहीं मस्जिदों की टूटी मीनारें कहीं तोड़ डाले मेरे ही पैकर।
धरमसंसदों में मेरा अक्स दिखता नित नित्य फतवों में तू दिख रहा है
यहाँ सब बने आज हैं ख़ुद के भगवन शिव है ख़ुदी से ये ख़ुद में ख़ुदा है।
धरा से उगे हैं धरा में मिलेंगे धरा पोसती है धरा पालती है
धरा ख़ाक को भी समेटे हुए है धरा ही लहद है यही पालकी है।
पर इसके वंदन से शरमा रहा है कुराँ का हवाला, यही बोलता है
ज़मीनी खुदाई की मेहनतकशी है नित रक्तरंजित खडग डोलता है।
अभी ध्यान का अब समय हो चला है समय को वचन था तभी जा रहा हूँ
मगर सत्य कहकर विदा ले सकूँगा संवाद अंतिम ये बतला रहा हूँ।
जहाँ में अमन छोड़ कुछ भी न होगा अगर मानवों की घृणित मति न घूमे
हरा रंग लग के गले जब कहेगा नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे।
नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे।
जय हिन्द !