कुछ कहना है मुझे
कुछ कहना है मुझे
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ये धरती चुप - सी है
गगन भी खामोश - सा
मगर व्याकुल - सा है मन मेरा
कुछ कहना है मुझे।
हवाएँ सर्द - सीहैं
रात भी ठंड के आगोश में
मगर घुमड़ते बादल चित्त के
कुछ सहना है मुझे।
बातें रुकी - सी हैं
नज़रें जाने किस रोष में
ठहर जाता हूँ रह - रह के
कुछ बहना है मुझे।
कलम बेफिक्र - सी है
भावों के असीमित जोश में
पर कहीं हो असमंजस के
कुछ रहना है मुझे।
उम्मीदें धूमिल - सी हैं
विश्वास भी नही अब होश में
फिर भी चल पड़ता हूँ रुक - रुक के
कुछ कहना है मुझे।