ख्वाहिशें
ख्वाहिशें
ख्वाहिशें हर एक रोज हमसे झगड़ती रहीं,
अंजान होकर के खुद पर ही अकड़ती रहीं।
समझाया बहुत मगर समझी एक बार नहीं,
हर बार चेहरा बदलकर मुझको पकड़ती रहीं।
ख्वाहिशें हर एक रोज हमसे झगड़ती रहीं,
अंजान होकर के खुद पर ही अकड़ती रहीं।
समझाया बहुत मगर समझी एक बार नहीं,
हर बार चेहरा बदलकर मुझको पकड़ती रहीं।