क्यों खुदा को दोषी बना दिया
क्यों खुदा को दोषी बना दिया
कुचल हरे पौधों को तुमने
पुष्प अभिलाषा को मिटा दिया
छीना साँस काट पेड़ो को तुमने
खुद का साधन बना लिया
घोल ज़हर इस जलवायु में तुमने
सतरंगी धनुष भी मिटा दिया
ज्यों आया जल संकट इस जहान में
क्यों खुदा को दोषी बना दिया
आग लगा उनके घर जंगल में तुमने
वहाँ को बंजर बना दिया
पीठ पीछे शिकार कर तुमने
बेज़ुबानों को विलुप्त करा दिया
तोड़ आशियानें उन बेजुबानों के
अपना मकान बसा लिया
ज्यों आया शेर तेरे मकां में
क्यों खुदा को दोषी बना दिया
घर से निकाल कूड़े को तुमने
पवित्र नदियों में गिरा दिया
जीवन रूपी इस अमृत जल को
तुमने फिज़ूल में ही बहा किया
लगा कर ढेर पॉलिथीन के तुमने
इस मिट्टी को भी तबाह किया
ज्यों आया जलप्रलय इस जहान में
क्यों खुदा को दोषी बना दिया
सुनो कुछ वक्त है अब भी
वक्त ने वक्त से पहले सजग किया
सम्भल जाओ अब बस करो
इस धरा को बहुत है बर्बाद किया
सुनो तुमने अपनी सांसो को
खुद के हाथों से ही कफ़न दिया
जो ना रहे सांसे तो न कहना
ऐ ख़ुदा! ये तूने क्या किया