व्यस्त तुम भी कहीं हो, मुझे भी न फुर्सत...
व्यस्त तुम भी कहीं हो, मुझे भी न फुर्सत...
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पहली मोहब्बत, तुम्हीं से तुम्हीं तक,
ज़िदें तुमसे सारी, तुम्ही से सब नाटक...
तुमने चलना सिखाया और थोड़ा सा रोना,
खाना खाने से पहले अपने हाथ और मुँह धोना...
याद तुमको हो शायद वो मेरा मचलना,
पकड़े उंगली तुम्हारी फुदक-फुदक के चलना,
गोद होकर तुम्हारे वो सबको चिढाना,
कभी पास आना, कभी भाग जाना,
रूठ करके मेरा वो जमीं पे लेट जाना,
फिर आना तुम्हारा और हमको मनाना,
वो करते हुवे नखरे मेरा स्कूल जाना,
डाँटना वो तुम्हारा फिर आइस क्रीम दिलाना,
आइस क्रीम देखकर, जी ना मेरा ललचाता,
जाता था संग तुम्हारे, अब अकेले ही जाता,
याद आती तुम्हारी पर रो भी न सकता,
बड़ा थोड़ा सा जो न मैं हो गया हूँ,
इस नश्वर भंवर में जो मैं खो गया हूँ,
व्यस्त तुम भी कहीं हो,मुझे भी ना फुर्सत,
ये जो ज़िन्दगी है, यही है यही है...