लफ़्ज-दर-लफ़्ज
लफ़्ज-दर-लफ़्ज
मेरा बोलना मुझे कितना महँगा पड़ा
मैं लफ़्ज-दर-लफ़्ज खोखला होता गया |
मैंने की थी जिनसे उम्मीद प्यार की
पैसा उनका ईमान था, पैसा उनका ख़ुदा |
दोस्त बाँट लेते हैं दर्द दोस्तों का
देर हो चुकी थी जब तलक ये वहम उड़ा |
कुछ बातें ख़ुद ही देखनी होती हैं मगर
मैं हवाओं से उनका रुख पूछता रहा |
उस किनारे पर तब गूंजें हैं कहकहे
इस किनारे पर जब कोई तूफां उठा |
तन्हा होना ही था किसी-न-किसी मोड़ पर
यूं तो कुछ दूर तक वो भी मेरे साथ चला |
तुम मेरी वफ़ाओं का हश्र न पूछो ' विर्क '
मेरा नाम हो गया है आजकल बेवफ़ा |