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Pawanesh Thakurathi

Abstract Tragedy

1.0  

Pawanesh Thakurathi

Abstract Tragedy

वह लेखक

वह लेखक

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इतना आसान नहीं था

कागज पर लिखना

क्योंकि लेखक के पास नहीं था कोई

अलादीन का जादुई चिराग


उसके पास थी कलम

और उस कलम से लेखक ने

बड़ी ही सिद्धत से लिखा


उसने कागज पर लिखा

बारिश हुई

और सब मिट गया

उसने कागज पर पुनः लिखा


इस बार दुश्मन आये

कागज को मोड़ा, तोड़ा

खींचा, झटका

सब कुछ किया

कागज को तो कुछ नहीं हुआ

लेकिन जो लिखा था

उसका एक-एक हर्फ

वे मिटा गये


उसने कागज पर फिर लिखा

इस बार और अधिक सिद्दत से लिखा

उसने जेठ की चिलचिलाती गर्मी में लिखा

उसने पूस की कड़कड़ाती ठंड में लिखा

उसने दिवस में लिखा

उसने रात्रि में लिखा

उसने हर मौसम

हर पहर में लिखा


जब उसने जेठ की गर्मी में लिखा

तो कागज में हरे-भरे पेड़ उग आये

जिसने छांव दी

तमाम आश्रितों को


जब उसने पूस की ठंड में लिखा

तो कागज में उग आई नर्म कपास

जिसने गर्म की

तमाम सांसें


जब उसने दिवस में लिखा

तो कागज में 

उग आया सूरज

जब उसने रात्रि में लिखा

तो कागज में

उग आये चांद-तारे


उसने कागज पर लिखा

बहुत कुछ लिखा

उसने कागज पर नमक लिखा

नींबू लिखा, चींटी लिखी


जब उसने कागज पर नमक लिखा

तब खुल गई वहाँ

मिष्ठान की दुकानें

जब उसने कागज पर नींबू लिखा

तब उगी कागज पर

शक्कर की फसल


जब उसने कागज पर चींटी लिखी

तब नाचती दिखीं

अनेक गिलहरियाँ

उसने कागज पर लिखा

इस अंदाज में लिखा

कि वहाँ बसंत छा गया


इस तरह उसने

बार-बार लिखा

कुछ समय बाद कागज में

सोना उगने लगा

वह लिखता रहा

लिखता रहा

और एक दिन कागज 

सोने की चिड़िया बन गया


सब कुछ अच्छा हुआ

खुशी का माहौल था

अफसोस सिर्फ इस बात का था कि

वह लेखक बार बार

चिल्लाता रहा 

मुझे स्याही की जरूरत है


उसकी आवाज को सबने

अनसुना किया... 

और वह लेखक एक दिन

अपनी देहरी पर

अपनी सांसें गिनता हुआ मिला


उसकी देह पर दो फटे पुराने कपड़े थे

हाथ में एक रोटी का टुकड़ा..। 


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