न वो बयाँ हुआ
न वो बयाँ हुआ
रस्ता देखा किए तेरा तासहर-ए-ज़िंदग़ी,
जादा-ए-ख़ूबाँ न तेरे क़दमों का मेहमान हुआ...
हम ख़ुद अपने ख्यालों में बने असीर तेरे,
दिल ब-मिक़्दार-ए-हसरत जब मेरा ज़िन्दाँ हुआ...
बड़ी शिद्दत से छुपाया राज़, सीना-ए-गुदाज़ में,
आज जौफ़-ए-दिल-ए-नाक़ामिल में अयाँ हुआ...
तेरी आरज़ू में था निहाँ, राज़-ए-लौ-ए-हस्ती,
इस लौ ही की तपिश में आज मैं जूफिशाँ हुआ...
फिर तेरी याद को न दिल से मिटा सका मैं,
फिर सर-ए-महफ़िल मैं आज ख़ूँ-फ़िशाँ हुआ...
तेरी सूरत से तो था दिल गुलज़ार अब बजुज़,
तेरा क़िस्सा-ए-अय्यारी भी दिल में निहां हुआ...
सुनते हैं कि रोशन-ए-ख़ुर्शीद है जहाँ सारा,
दिल-ए-मर्ग़ में अब भी मगर सवेरा कहाँ हुआ...
कहती है हर नज़र हुआ रुसवाँ मैं तेरे कूचे में,
मैं नासमझ कहता हूँ लड़कपन में, हाँ हुआ...
फिर देखी नाक़िद ने मेरी तमन्ना-ए-ज़ीस्त,
फिर वो अग़यार मेरे जज़्बे पे हैराँ हुआ...
फिर गए हम, दर-ए-यार पे होने को पशेमाँ,
फिर मिले ज़ख्म, फिर पैराहन ख़ूँचकाँ हुआ...
क्या केन ख़्वाहिश, इससे लाला-ओ-ग़ुल की,
तेरी चाहत का बना मामूर, अब बयाबाँ हुआ...
इतना तो था असर है शुक्र, मेरे शौक़ में यारब,
वर्ना क्या कहें मैं क्यों, तेरा संग-ए-आस्ताँ हुआ...
अजब रहीं नादानियाँ, इस दिल की भी मेरे,
न जज़्ब-ए-दर्द हुआ मुझसे, न वो बयाँ हुआ...