ज़िंदगी - एक ख़्याल
ज़िंदगी - एक ख़्याल
जब जिंदगी जीने की तमन्ना हो मुझे,
तो मौत से भी मैं कर लू राबता
कुछ पल ठहरू और फिर दो कदम मैं चलूँ,
कि जब मंजिल ना दिखे तो लहरों से भी मैं कर लू राबता,
जिंदगी, मुकम्मल कर लूंगा तुझे,
इस जहाँ में नहीं तो उस जहाँ मे सही,
कि सुन लो अगर मैं कर लू ख़ुद पे यकीं,
तो खुदा की कसम तोड़ दूँगा खुदा से वास्ता,
मझधार में रहूँ और लहरों से में कहूँ,
कि लगा ज़ोर अब ना झुका पाएगा,
मेरे ख्वाबों का समुंदर से है वास्ता,
में तो मौज का दरिया हूँ क्या इतना भी तुम्हें नहीं है पता
जब जिंदगी जीने की तमन्ना हो मुझे,
तो मौत से भी मैं कर लू राबता !