नामुकम्मल इश्क
नामुकम्मल इश्क
जो मुक्कमल भी ना हुआ,
वो इश्क ही कुछ और था।
अंदाजा तो था हमें कि,
उन्हें चाह नहीं है हमसे।
फिर भी हमने जो लिया,
वो रिस्क ही कुछ और था।
खता हो गई थी हमसे,
यूँ जाने अनजाने में।
ग़लतफहमी थी उन्हें,
इश्क को पहचानने में।
भुला बैठे खुद को हम,
ये उनका ही दौर था।
हमारे इश्क को वो बस,
पैरों तले कुचल गए।
इश्क के चक्कर में हम,
बहुत ही बदल गए।
छोड़ आए इश्क अपना
वो शहर लाहौर था।
जो मुक्कमल भी ना हुआ,
वो इश्क ही कुछ और था।