सफेद झूठ
सफेद झूठ
किसी और का हाथ पकड़कर ,
तुम मुझे जानबूझकर दिखाते हो।
मैं सब जानती हूं कि तुम मुझे,
अंदर ही अंदर जलाते हो।
तुम पूछोगे फिर एक ही बात,
क्या तुम्हें फर्क नहीं पड़ता ?
और मैं फिर साफ शब्दों में कहूंगी,
तुम्हें एक बार में क्यों नहीं समझता।
पर तुम्हें सच कौन बताए कि,
मैं उस वक्त भी तुमसे झूठ कहूंगी !
तुम फिर भी करीब आकर,
हर बार अपना प्यार जताओंगे।
एक नहीं सौ बार पूछोगे मुझसे कि,
क्या तुम्हें मुझसे प्यार है ?
और मैं फिर साफ शब्दों में कहूंगी,
कि मुझे तो आज भी इंकार है।
पर तुम्हें ये कौन बताए कि,
मैं उस वक्त भी तुमसे झूठ कहूंगी !
अंतिम बार जाने से पहले तुम,
मुड़कर एक बार जरूर देखोगे।
मैं तुम्हें रोक लूंगी आखिर शायद,
ऐसा तुम दिल ही दिल में सोचोगे।
तुम रुकने के लिए अगर पूछोगे तो,
मैं तुम्हें जाने के लिए ही कहूंगी।
पर तुम्हें सच कौन बताए कि,
मैं उस वक्त भी तुमसे झूठ कहूंगी !