"सैनिक की अभिलाषा"
"सैनिक की अभिलाषा"
लड़ूँ दिन रात सीमा पर, कि ज़िन्दा हो वतन मेरा,
मरूँ मैं देश के ख़ातिर, तिरंगा हो कफ़न मेरा।
हजारों बार जन्मूँ मैं हजारों बार मर जाऊँ--
करूँ इस देश की सेवा, कि ऐसा हो जतन मेरा।।१)
निकल कर सांस सीने से, करे फिर गर्व खुद पर ही,
पिता-माता भी गर्वित हों, उन्हे हो फक्र मुझपर ही।
मिला जीवन जहाँ पर ये, वतन का कर्ज भर जाऊँ--
लिपट जाऊँ तिरंगे से, लूटा दूँ जान उसपर ही।।२)