आग
आग
हर तरफ़ लगी है
ये कैसी आग
जाने इस आग में
क्या है बात.
जो चारों तरफ़ अपना
मुंह लपलपा रही है
हर गली हर नुक्कड़
और हर चौराहे पर
यह अपना विकराल रूप
दिखला रही है
यहाँ तक कि समाज के
पूरे अस्तित्व को ही यह आग
एक फन काढ़े
भयानक नाग की तरह
अपने अंतहीन पेट में
लीलती ही चली जा रही है.
चाहे पेट में
आग लगाने की आग हो
चाहे पेट की आग
बुझाने की आग हो
चाहे रिश्तों में
नफरत बढ़ाने की आग हो
चाहे इन्सान द्वारा
इन्सान को जलाने की आग हो
आग तो बस आग है
जो सिर्फ़ जलना और जलाना ही जानती है.