काजल करने के लिए
काजल करने के लिए
इन आँखों को नूर नहीं जुनून चाहिए,
काजल करने के लिए ताज़ा खूँ चाहिए !
गीत, ग़ज़ल, कविता, नज़्म सब बोलती हैं,
जिससे हज़रात क़त्ल हो, मजमून चाहिए !
जिस्म में गर्मी, लबों पे आग, अदाओं में चुभन,
इन्हें अब दिसम्बर में भी जून चाहिए !
हलाल कर के बन्द ज़ुबानों को जो मिले,
कातिलों की पसन्द वाला ही सुकून चाहिए !
इन्हें डराकर जीने की आदत है सदियों से,
इन्हें अँधा, गूँगा, बहरा और लाचार कानून चाहिए !