विह्वल हृदय
विह्वल हृदय
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क्षत विक्षत होकर
धराशायी सा
पड़ा हुआ है
हृदय।
उमंग,
साहस,
उत्साह
से लिप्त
शरीर अब
इतनी कोशिश
भी करने में
असमर्थ है
की पुनः किसी
प्रेयसी के लिए
उठ खड़ा हो
और पुनः किसी
कवि के श्रृंगार रस
का कोई उदाहरण बन सके।