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Vivek Tariyal

Abstract Others Inspirational

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Vivek Tariyal

Abstract Others Inspirational

दीपावली पर अँधेरा

दीपावली पर अँधेरा

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दिवाली आई है

उमंगें आशाएँ

साथ लेकर जाड़े को

इठलाती आई है

मदमस्त पवन ।

 

आँगन द्वार सजे है

दीपों के चमकीले प्रकाश से

जगमग हो रहा है घर

आँगन की रंगोली

लग रही है सुन्दर

स्वर्ण मूर्ति माँ लक्ष्मी की ।

 

बच्चो में उल्लास है

पटाखे फोड़ने का

अब समय आ गया है

अनार जलाने का ।

उच्च ध्वनि के सब पटाखे जल रहे हैं

होलिका शायद भाग्यवान थी

उसे जलना पड़ा था सिर्फ एक बार

जैसे हर वर्ष जलती है पृथ्वी ।

 

बम फूटा ज़ोर से आई आवाज़

कहीं से एक औरत की

सड़क पर जा रही थी वह

मिठाई का डिब्बा लिए

अपने कुटुंब के लोगों से मिलने

पर क्या वह पहुँच पाएगी?

 

रात्रि के अंतिम प्रहर में

धमाकों की आवाज़ के बीच

तोह क्या हुआ यदि १० बज चुके हैं|

अगला दिन निकल आया है

पर आसमान में धुंध है

मौसमी नहीं है !

चक्षुओं पर पड़ी है जो धुंध

कैसा मिटा पाएगा उसे

सूरज का प्रकाश

जब दिवाली के दिन ही हो गया हो अँधेरा !


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