आ जाओ तुम
आ जाओ तुम
पास आओ पनाह में ले लूँ
बहते आँसू की तरह
बह निकली तुम,
मुझमें बसी बेइन्तेहाँ
मुझे ही छोड़कर
यूँ रुठकर ना जाओ तुम
पास मेरे आ जाओ तुम।
खोल दिये है फ़िज़ाओं ने
बहारों के किवाड़ सारे
रंगत तो देखो,नज़ारों की
ऐसे रंगीन मौसम में।
यूँ रुठकर ना जाओ तुम
पास मेरे आ जाओ तुम
रंगीन शाम ने आगाज़ दिया
ज़ुल्फ़ों को जरा खोलकर।
काँधे पर मेरे बिखराओ ना
कोफ़ी भरे दो मग पड़े
लबों से चख दो घूंटभर
बैठो कुछ पल साथ ऐसे में
यूँ रुठकर ना जाओ तुम।
पास मेरे आ जाओ तुम
सारा आलम सो रहा
हर करवट पे दम निकले हैं
रात जा रही मद्धम-मद्धम
दिल बेकल सा रो रहा।
प्यास बढ़ती जाये पल-पल
चाँदनी रात में हमें तड़पाके
यूँ रुठकर ना जाओ तुम
पास मेरे आ जाओ तुम।