खोजती हूं इतिहास
खोजती हूं इतिहास
इस शाश्वत जीवन में दिखता है सृष्टि का नाश
आंखों में भरकर ज्ञान से खोजती हूं इतिहास।
इस दिल में सदा रहता है अज्ञातवास
कहां है अज्ञातवास में संकल्प का वास।
कहां गया वह सपनों सा जागरूक विवेक
खत्म हुई संकल्पनाएँ हुई भावनाएँ मूक।
प्रकाश की आभामयी ज्योती भीतर ही बुझ गई
दिल की भावनाएँ मति मंद सी हो गई।
अपंग हो गए हाथ पाव मन बुद्धिहीन
ह्रदय में होता है मंथन और जलता है मेरा मन।
विवेक शुन्य जगत में नहीं किसी को शांति
नहीं रहा अब तो उल्लास मिट गई भ्रांति।
हाथों में है मेरे यह विशाल जिम्मेदारी
और धड़कन में है मेरे देश सेवा भारी।
जगाओ आत्मविश्वास और समृद्धि की ज्योत
देश के लिए रखिए ध्यान जनमन हो जागृत।