अर्धांग-अर्धांग
अर्धांग-अर्धांग
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तुम बाती हो मैं ज्योति हूँ
जलकर बने प्रकाश हम।
तुम चक्र हो मैं धुरी हूँ
साथ जुड़े तो चलते हम।
तुम पृष्ठ हो मैं लेखनी हूँ
व्यक्त साथ ही होते हम।
तुम बीज हो मैं माटी हूँ
अंकुर मिलकर देंगे हम।
तुम सागर तो मैं सरिता हूँ
मेरी परिणति हो तुम
वरना हैं केवल पानी हम।
तुम हीरक हो मैं कंचन हूँ
संग संग अलंकार हम
तुम यंत्र हो मैं ऊर्जा हूँ
साथ करे उत्पादन हम।
तुम शिव हो मैं शक्ति हूँ
संग हुए तो पूर्ण हैं
अन्यथा हैं अपूर्ण हम।
तुम अर्धांग हो मैं भी अर्धांग हूँ
अर्ध अर्ध कर एक हुए
तभी करेंगें सृजन हम।