प्रेम एक माँ का...
प्रेम एक माँ का...
नहीं भूल सकती वो दिन
जब पहली बार तुम्हें देखा था
तुम्हारी छोटी सी आँखें जब खुली
तो उनमें मैंने पूरी दुनिया देखी थी।
बंद उंगलियों की मुट्ठी जब खुली
तो तुम्हारी किस्मत पढ़ ली थी।
वो पहली बार जब मैंने तुम्हें
अपने हाथों में लिया जिंदगी
का सबसे खास दिन था
तुम्हारी वह छोटी आँखें, नन्हे पैर
देखकर एक सुकून मिला।
आखिर इन सबके लिए मैंने
एक लंबा सफर तय किया था
तुम्हारी वो मनमोहक मीठी सी
मुस्कान
किसी का भी दिल पिघला
देने के लिए काफी थी
चेहरे पर तुम्हारे,
वह सूरज की रौशनी सा तेज
जो मेरे जीवन में आए अंधेरे को मिटा दे
तुम्हें अपनी गोद में लेकर मैंने
उस निस्वार्थ प्रेम को महसूस किया
जो जीवन भर हमारे रिश्ते को
मज़बूती से बांधे रखता।