अधूरी दास्तान
अधूरी दास्तान
मुद्दत के बाद दिल के
राज़ बताना चाहता हूँ।
बात पुराने याद कर, फिर से
उन लम्हों को जीना चाहता हूँ।
बड़ी फ़ुर्सत में हूँ आज
कुछ तुम्हारी सुनना,
कुछ अपनी सुनाना चाहता हूँ।
वो शाम जो अधूरी रह गयी थी
दिल की बात ज़ुबान पर आते आते।
तुम्हारे इंतेज़ार की बेबसी
ना समझ ही पाईं थीं मेरी आँखें।
आज तुमसे ही शब्द उधार लेकर
जो ना कह सका कहना चाहता हूँ।
बड़ी फ़ुर्सत मे हूँ आज
कुछ तुम्हारी सुनना,
कुछ अपनी सुनाना चाहता हूँ।
मगर जानता हूँ तुम्हारा केवल
ख़्वाबों में आना जाना है।
चाहकर भी ना कभी अब
दीदार तुम्हारा हो पाना है।
फिर भी क़िस्मत से मैं तुम्हें
एक बार और माँगना चाहता हूँ।
बड़ी फ़ुर्सत मे हूँ आज
कुछ तुम्हारी सुनना,
कुछ अपनी सुनाना चाहता हूँ।