महक
महक
अरसे बाद हुआ था
तुमसे मिलना
आदतन....
तुम भी ले आये थे
मेरे पसन्दीदा गुलाब …
अब की बार .... मैं छोड़ आई थी
उन गुलाबों को ...उसी बेंच पर
क्यों की अब की बार का ,
अरसे बाद का मिलना ..
महकाता रहेगा मेरे ज़हन को ...अरसे तक …
मैं इरादतन ही छोड़ आई थी....
उन गुलाबों को वहाँ ....
के किसी को उन्हें देखकर ही शायद
याद आ जाये ...
किसी से मिलने की
और फिर ऐसे ही जारी रहे…
इस महक का सफर …