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Shivam Ji

Drama

3  

Shivam Ji

Drama

जवानी

जवानी

3 mins
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बचपन था

तो जवानी एक ड्रीम थी

जब जवान हुए

तो बचपन एक ज़माना था...


जब घर में रहते थे

आज़ादी अच्छी लगती थी

आज आज़ादी है

फिर भी घर जाने की जल्दी रहती है...


कभी होटल में जाना

पिज़्ज़ा, बर्गर खाना पसंद था

आज घर पर आना

और माँ के हाथ का खाना पसंद है...


स्कूल में जिनके साथ झगड़ते थे

आज उनको ही इंटरनेट पे तलाशते है...

ख़ुशी किसमे होती है

ये पता अब चला है

बचपन क्या था

इसका एहसास अब हुआ है...


काश बदल सकते

हम ज़िंदगी के कुछ साल

काश जी सकते हम

ज़िंदगी फिर एक बार...


जब हम अपने शर्ट में हाथ छुपाते थे

और लोगों से कहते फिरते थे

देखो ! मैंने अपने हाथ जादू से गायब कर दिए !


जब हमारे पास

चार रंगों से लिखने वाला

एक पेन हुआ करता था

और हम सभी के बटन को

एक साथ दबाने की

कोशिश किया करते थे !


जब हम दरवाज़े के पीछे छुपते थे

ताकि अगर कोई आये तो उसे डरा सके

जब आँख बंद कर

सोने का नाटक करते थे

ताकि कोई हमें गोद में उठा के

बिस्तर तक पहुंंचा दे !


सोचा करते थे कि

ये चाँद हमारी साइकिल के

पीछे - पीछे क्यों चल रहा है ?

ऑन / ऑफ वाले स्विच को बीच में

अटकाने की कोशिश किया करते थे !


फल के बीज को

इस डर से नहीं खाते थे

कि कहीं हमारे पेट में पेड़ न उग जाए !


बर्थडे सिर्फ इसलिए मनाते थे

ताकि ढेर सारे गिफ्ट मिले

फ्रिज को धीरे से बंद करके

ये जानने की कोशिश करते थे

कि इसकी लाइट कब बंद होती है !


सच ! बचपन में सोचते

हम बड़े क्यों नहीं हो रहे ?

और अब सोचते

हम बड़े क्यों हो गए !





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