कागज़
कागज़
हमने आज यूं ही लिखी ग़ज़ल
कागज़ पर उतरी वो पुरानी ग़ज़ल
न जाने क्यों बहक रहा है दिल?
उन की यादें आज बनी ग़ज़ल
क्या उनको भी याद आती होगी?
भीगी रातों की वो शर्मीली ग़ज़ल?
हम अभी तक भूल ना सके
पनघट पर गुमसुम रूठी ग़ज़ल
हम हर रोज़ होठों से लगाते है
शराब की गिलास में डूबी ग़ज़ल
महफूज़ रखा हमने वो कोरा कागज़
तू मिले, तो तेरे होठों से लिखूं गज़ल