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Rashmi Prabha

Others

5.0  

Rashmi Prabha

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कोई शक्ति होती है

कोई शक्ति होती है

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कोई शक्ति होती तो है

शक्ति - अद्वैत की 

जिसकी सरहद पर होती है बातें 

आत्मा की परमात्मा से ...

मैं सुन सकूँ उस शक्ति को 

शायद या संभवतः इसीलिए 

अबोध बचपन में मैं शमशान से गुज़री 


ओह !

निःसंदेह अपार भय मेरे संग था 

पर वहां सोये अपने छोटे भाई से मिलने 

अपनी माँ की वेदना के संग 

मैं ही नहीं ... हम सारे भाई बहन जाते थे !

मैं नहीं जानती औरों का अनुभव 

पर मेरे साथ कोई लौटता था 

हर घड़ी उसका साथ रहना भय था 

या सत्य इससे परे 

मैं उससे बातें करती 

मुझ जैसे साधारण अस्तित्व का डरना 

साधारण सी ही बात है 

पर इस भय के मध्य वह

कुछ ऐसा बताता कि 

बहुत अनोखा 

अजीब सा लगता 


पर आत्मा भूत ईश्वर के मध्य 

ऐसी कई अनुभूतियाँ सबसे परे लगतीं !

जब जब अंधेरा होता 

ये अनुभूतियाँ 

एक ही बार में कई पतवारों पर 

अपनी अद्भुत सशक्त पकड़ रखतीं 

मैं भले ही घबरा जाऊँ 

इनसे दूर भागने की 

छुपने की कोशिश करूँ 

इन्होंने वो सारे दृश्य उपस्थित किये 

जहाँ इनकी ऊँगली ही मेरी दिशा बनी !


धीरे धीरे मैंने जाना 

कि न जन्म है न मृत्यु 

हर कार्य का है प्रयोजन ...

शरीर नश्वर कहाँ 

इसका प्रत्येक सञ्चालन 

आत्मायुक्त परमात्मा से है !

जो नष्ट होता है 

वह भ्रमजाल है 

वियोग- मायाजाल 

जब हम अपने भ्रम को स्वीकार कर लेते हैं 

वियोग से समझौता कर लेते हैं 

तब होता है दूसरे चरण का आरम्भ !


सत्य का प्राप्य प्रत्यक्ष जो भी दिखे 

सत्य के प्रत्येक पल में 

प्रभु का हाथ सर पे होता है 

रक्त की एक एक बूंद में 

वह अमरत्व घोलता है

सत्य को ठेस -

इसके पीछे भी ईश्वर का करिश्मा

झूठ के संहार के लिए 

उसके अपरिवर्तित रूप को

उजागर करना होता है 

कोई भी असुर हो 

उसे पहले अपरिमित शक्ति दी जाती है 

फिर अहंकार के आगे संहार के रास्ते 

स्वतः खुल जाते हैं


मैंने देखा, मैंने जाना, मैंने महसूस किया 

परछाईं की तरह वह रहस्य 

यानि ईश्वर 

साथ साथ चलता है 

ज्ञान से परे कई अविश्वसनीय

तथ्य देता है 

मस्तिष्क मृत 

शरीर जाग्रत  

यह सब यूँ हीं नहीं होता 

मृत संवेदनाओं को जगाने के लिए 

अनोखी जड़ी बूटियों से 

सांसों को चलाना भी पड़ता है


मैं स्वयं हूँ कहाँ ???


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