आज की व्यथा
आज की व्यथा
दिन रात मेहनत करके
एक खूबसूरत आशियाना बनाया
नन्हीं किलकारियों के संगीत से
फिर उसको कुछ और सजाया
चहकता देख कर बच्चों को
दिल बाग बाग हो जाता था हमारा
उनकी खुशी को
कायम रखने की कोशिश में
बिता दिया जीवन सारा
सुकून था अपनी जिम्मेदारी को
अच्छे से निभाया हमने
अच्छी परवरिश बच्चों को दे कर
फ़र्ज़ अपना निभाया हमने
बहू के हाथों के खाने का
आनंद अब मिलेगा
पोते-पोतियों के साथ
बुढापा सुकून से गुजरेगा
सौंप दी अपनी
सब कमाई बच्चों को
सोचा इन झमेलों से
जीवन अब तो मुक्त हो
जीवन की सबसे बड़ी
गलती ये ही हो गई
आज अपने ही आशियाने में
अपने ही लिए
कमरे की कमी रह गई
वृद्ध आश्रम में
बेहतर देखभाल आपकी हो जाएगी
हम उम्र लोगो के साथ
जिंदगी मज़े में कट जाएगी
कह कर बच्चों में
जिम्मेदारी अपनी निभा दी
ख्वाहिश सुकून की
एक पल में ही पूरी कर दी।