मायूसी
मायूसी
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सारी हदें आर-पार कर चुकी है मायूसी,
बढ़ रही है हुक़ूमत की मनमानी जासूसी,
अनचाहे सवाल पूछो तो मिले सिर्फ फाँसी,
अब तो अवाम की ज़िन्दगी बुरी तरह फंसी ।।
यह सियासत की शराब है कैसी,
क्या ताकत का नशा होता है ऐसा,
अपने उसूलों को ज्यादती ने डसा,
सत्ता की चौकीदारी नहीं है इनके जैसी ।।
नहीं चाहिए इन्हें विदुर सम सलाहकार,
नहीं चाहिए इन्हें प्रखर निष्पक्ष पत्रकार,
नहीं चाहिए इन्हें कुशाग्र वित्तीय लेखाकार,
चाहिए इन्हें बस लचीले चापलूस चाटुकार ।।