चाहूं आज फिर से...
चाहूं आज फिर से...
चाहूं आज फिर से अपनी मनचाही जिंदगी को जी लूं...
क्या हुआ फिर जो आज, जिम्मेदारियों से घिरी हूं।
मेरी भी कुछ इच्छाएं है, देखती हूं मैं भी सपने...
मेरी एक पहचान हो, वजूद हो मेरा अपना।
देख खुला आसमान मन करे कि मैं भी उड़ जाऊं...
पंख लगे हो मुझे भी, सारी दुनिया घूम के आऊं।
रंग बिरंगे फूलों को देख, मेरा भी मन करता...
खुशियों के रंगों से खिलता महकता जीवन हो मेरा।
कल-कल करती नदियां देख, मेरा भी मन करता...
बनके नदी, पहाड़ों से बहकर...
पहुंच मैदानों और खेतों में मिल जाऊं...
बंजर सूखी धरती पर, फिर से सरसों लहराऊं।
ना जकडो़ मुझे बेड़ियों में, ना बांधो मुझे सीमाओं में...
अपनी मनमर्जी करने का मेरा भी दिल करता।
चाहूं आज फिर से अपनी मनचाही जिंदगी को जी लूं...
क्या हुआ फिर जो आज, जिम्मेदारियों से घिरी हूं।