ख्वाईश के पानी...... !
ख्वाईश के पानी...... !
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जितना
होना चाहे
पास....
दूर
होते गये.....
आँशु को
बेफिजूल.....
बोते गए....
पनप कर
एक पौधा
हो
गया,
कि ख्वाईश
के पानी
से
सीचते गए...
जितना
होना चाहे
पास....
दूर
होते गये..... !
उनकी तस्वीर
को
सीने से लगाकर....
उनके ज़ख्म
को
मरहम बनाकर....
उनकी यादों
को
दिल में दबाकर....
कदम को यूँ ही
बढ़ाते गये.....
हम याद
आते
गये....
और वो हमें
भुलाते
गये......
जितना
होना चाहे
पास.....
दूर
होते गये...... !