अब बस कर
अब बस कर
कब तक अपना रोना रो कर
तू खुद को ऐसे रोकेगा।
हालातों के अपने बंदिश की
दुहाई तू कब तक देगा।
क्यों आँखों को मूँदे हुए
मंज़िल को है ढूँढ रहा।
क्यों औरों का हाथ पकड़
खुद पर से, तू विश्वास खो रहा।
दो कदम ही चला था और तू
तानों से सबकी सहम गया।
जो ख़्वाब सँजोए थे बरसों से
ना उसका भी तूने कद्र किया।
क्यों दे दिया जमाने को हक़
अपने तक़दीर के नीलामी की।
दिल में खलबली सी मची थी फिर भी
ना ज़ुबान से इसका विरोध किया।
अब तो बस कर तू अपनी
ढोंग ये लाचारी की।
ख़ुदगर्ज़ सा बन जा तू थोड़ा सा
पहचान ले ताक़त को अपनी।
दौड़ लगा पूरी ताक़त से
जो ना दौड़ सके तो चल कर देख।
चलने में अगर बाधा आए
तो रेंग जमीं पर बढ़ना सीख।
आज के कंधों पर ही तेरी
भविष्य की जिम्मेदारी है।
सौगात जो लेकर आएगा कल
तेरे कर्मों का ही तो प्रतिफल है।
हर हाल में मंज़िल से अपनी
तू नज़र को ना हटने देना।
धुँध छँट जाएगा एक दिन
बस मन को ना थकने देना।
बस मन को ना थकने देना।