पहली वर्षगांठ
पहली वर्षगांठ
तेरे पहले वर्षगांठ पर, सोचूँ भेंट तुझे क्या दूँ ?
तेरे बचपन का चित्र समेट, सोचा तेरा बचपन लिख दूँ।
कभी हँसाए, कभी रूलाए, मेरे मन में नाचे मोर,
तू चंदा सा चमके आँगन, मैं बन गया चकोर।
तू धड़कन मेरे दिल की, माँ की ममता का साया है,
तू मुझमें है, मैं तुझमें हूँ, क्या रूप सलोना पाया है।
तेरी सूरत, तेरा नखरा और तेरा उतावलापन,
कभी हँसाए, कभी रूलाए, अंश तुम्हारा ये बचपन।
कब सोए तू, कब जग जाऐ, कब हँस दे और कब रो जाए,
किसे पता है, कब और किस पल, तेरे होठ गुलाबी मुसकाऐ।
हँसते-हँसते रो देना और रोते-रोते हँस देना,
चलते-चलते गिर जाना और गिरते-गिरते चल देना।
तेरी इसी अदा पे हमने, भुला दिया है तन-मन-धन,
कभी हँसाए, कभी रूलाए, अंश तुम्हारा ये बचपन।
कजराए नयनों का जादू, छा जाऐ चहुँ ओर,
कब अंधियारा, कब उजियारा, कब संझा कब भोर।
कब बैठे तू, कब पलटे तू, कब चल दे ये किसे पता,
तेरे लिए क्या सच्चा-झूठा, क्या दोस्ती क्या खता।
मुझे पता है तू ही केवल, इस जग का सच्चा भगवन,
कभी हँसाए, कभी रूलाए, अंश तुन्हारा ये बचपन।
तेरे आने से मैं समझा, क्या रस है जीवन जीने में,
इससे पहले तो जीता था, दु:ख-दर्द छिपाए सीने में।
तू नुझे सिखाया तुतलाना, दीदी-दादा, नानी-नाना,
तुझे देखकर मैंने भी, सीखा हँसना, रोना, गाना।
थी तेरे बेगैर वीरान पड़ी, मेरी दुनिया, मेरा जीवन,
कभी हँसाए, कभी रूलाए, अंश तुम्हारा ये बचपन।
सुबह हुआ तो सूरज दादा, तुझसे ही मिलने आया,
शाम हुई तो चंदा मामा, तुझे सुलाने खुद आया।
धरती माता तुझे समेटे, अपने प्यारे आँचल में,
बहती-गाती पवन पुकारे, आ मुन्ना मेरे संग में।
तू खुद सोचे, मैं जाऊँ किधर, धरती, सूरज या चाँद, पवन,
कभी हँसाए कभी रूलाए, अंश तुम्हारा ये बचपन।
तू कुलदीपक, राजा, अंशु, तू है किशन-कन्हैया,
बिन बंशी तू राग सुनाए, नाचे ता-ता थैया।
मैं भी नाचूँ तेरे संग में, फिर से छेड़ो वह राग जरा,
आ बैठ मेरे संग, पल दो पल, ढूँढूँ अपनी तस्वीर जरा।
क्या कहूँ इसे मैं खुद अपना, त्याग, स्वार्थ या पागलपन,
कभी हँसाए, कभी रूलाए, अंश तुम्हारा ये बचपन।।