बारिश और तुम
बारिश और तुम
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ये बादल
ये बारिश का मौसम
जब जब आता है
यूँ लगता है....
तुम आये हो।
जैसे धरती की
दहलीज तक
ये झूमता बादल आता है
गर्जना का शोर कर
जगाता है धरती को
ग्रीष्म की उष्णता में
तप्त धरती
ताकती है बादल को
बेसब्री से इंतजार
करती है।
कब आएगा मेघ
इस इंतजार में
मूंद लेती है कुछ
पल को पलकें
और उमड़ घुमड़
कर आता बादल
छींटे मारता है
मुखमण्डल में
भीगो देता है
अंतर्मन तक को
जगह -जगह जो दरारें है
सबको तरबतर कर देता है।
कण कण को भिगोता है
तृप्त करता है
गहराई तक