एक तूलिका - थोड़े रंग
एक तूलिका - थोड़े रंग
एक तूलिका है -थोड़े थोड़े है रंग,
ये लिये मैंने कागज़, -भरे रंग ।
नभ खिंचा उसमें मैंने निल-रंग,
और उसमें बादल लिए श्वेत-रंग ।
झूलते वृक्ष-गण में हरित-रंग,
दूर सूर्याश्मी खिले पित्त-रंग ।
सुरम्य ये चित्र में कैसे रखूं मनु-अंग !?
विनाश, घृणा हरदम चाहे जो जंग ..!
कल्पना से ही काँपे निज अंग-अंग ,
छूटे तुली, हाथ काँपे, बिखरे सब रंग ।