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Subodh Upadhyay

Others

5.0  

Subodh Upadhyay

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जिन्दगी का सवाल

जिन्दगी का सवाल

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मैं राही जिन्दगी की मंजिल का,

  तूफान से लड़ना मैं जानूं,

बेमौसम पतझड़ और आंधी,

  मैं कैसे न इनको पहचानूं।

एक प्रश्न जिन्दगी का है खड़ा,

  उत्तर पाने को हूं चला,

ये सुबोध करने चला है बोध,

  पर निरुत्तर सा हूं मैं खड़ा।

चलती हुयी हवा महसूस करूं,

  उड़ती हुयी धूल को देखूं,

जिन्दगी मे कितने मोड़ आये,

  किस ओर जिन्दगी को मोडूँ।

पहाड़ से ऊंची है आशाऐं,

छूने का मन है आसमान,

नदी की धारा सी मन में बसी,

कुछ बनने का है अरमान ।

हत वक्त कौंधता एक सवाल,

  फिर उकसायें ये बारम्बार,

उत्तर तो मिला है कभी नहीं,

  बने मन में नित नये विचार ।

दो राहें पर खड़ा हूं मैं,

कोई पथ तो आकर बतलायें,

जिन्दगी का मुश्किल सा है सवाल,

कोई उत्तर आकर समझायें ॥





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