Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

manisha sinha

Others

5.0  

manisha sinha

Others

गर्व

गर्व

1 min
180


आजकल ना जाने

ये ख़्याल मुझे क्यों आता है,

क्यों फ़र्क़ है इतना ,

लड़के- लड़की में

ये सवाल हरबार सताता है।

समाज के नियमों को देख

सहसा विचार अब ये आता है,

शायद लड़का होना सही होता

मन बार बार ये समझाता है।


जो मैं एक लड़का होती

ना बँधती रस्मों की बेड़ियों में,

ना घर के इज़्ज़त की

ज़िम्मेदारी होती।

ना ही पहनावे से मेरे

तय होता मेरा चाल चलन,

खिलखिलाकर हँसना मेरा

ना परिभाषित करता मेरा आचरण।


अस्तित्व अपना बचाने को

ना संघर्ष ,जनम से ही करना पड़ता।

ना पराई धन कह निक़ाली जाती

ना दूजे घर,

दहेज के लिय जलना पड़ता।

फिरती बेख़ौफ़ हर गलियों में

अनचाहे नज़रों की ना पहरेदारी होती।

काश ,जो मैं एक लड़का होती।


लेकिन मैंने भी हिम्मत कर

मन को फिर समझाया है।

कोमल है,कमज़ोर नहीं तू

हमसे ही तो जीवन है।

डिगा ना सकेगा पथ से कोई ,बस

ताक़त को पहचानने की ज़रूरत है।

डटकर करना है सामना सबका

लड़की होने पर मुझको गर्व है।

लड़की होने पर मुझको गर्व है।


Rate this content
Log in