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Chitra Chellani

Others

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Chitra Chellani

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क्या जानूँ ...

क्या जानूँ ...

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क्या जानूँ मुझमें क्या ख़ास है 

क्या है जो मेरे आस पास है ।।


छोड़ अकेला काम पे जाना, माँ बाबा की मजबूरी 

छोटे भाई बहन को देखूँ, हो जाता है बहुत ज़रूरी 

सब कहते हैं, मुझे ज़िम्मेदारी का एहसास है 

क्या जानूँ मुझमें क्या ख़ास है ।।


सब कहते हैं मैं बिना खिलौनों के भी मन बहलाता हूँ 

रूखी रोटी, मैले कपड़ों में भी सुख पा जाता हूँ 

पर कैसे कहूँ, मेरे मन में भी हर आस है 

क्या जानूँ मुझमें क्या ख़ास है ।।


मजबूरी का श्याम मेघ जब मेरे जीवन पर छाया 

मेरे कोमल हाथों ने भी अपना पौरुष दिखलाया 

मगर सच, मुझे भी दर्द का एहसास है 

क्या जानूँ मुझमें क्या ख़ास है ।।


हैरां हैं वो, इन हालातों में भी मैं मुस्काता हूँ 

सच तो ये है, ढूंढूँ भी तो दूजी राह ना पाता हूँ 

संताप का समय कहाँ मेरे पास है 

क्या जानूँ मुझमें क्या ख़ास है ।।


कभी कभी कुछ बड़े लोग भी, मुझसे मिलने आते हैं 

खींच मेरी तस्वीर साथ में अपने वो ले जाते हैं 

पर मेरे तो सदा ही खाली हाथ हैं 

क्या जानूँ मुझमें क्या ख़ास है ।।


फिर सुना मेरी तस्वीर को इनाम भी है मिला 

आखिर ऐसा भी क्या था उसमें भला 

सब कहते हैं , इसमें ज़िंदगी के कई पाठ हैं 

मगर सच...

मैं क्या जानूँ मुझमें क्या ख़ास है ।।



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