निर्दयता
निर्दयता
आज इंसान इतना निर्दयी हो गया
कि एक अजन्मी बच्ची जिसने अभी
इस दुनिया को देखा तक नहीं
उसका जीवन ही उससे छीनने लगा
कसूर सिर्फ इतना उस मासूम का
कि वह घर का वंशज नहीं एक
लड़की है
वो लड़की जो किसी की बहन,
किसी की बेटी और किसी की
पत्नी होगी
वो लड़की जो इस सृष्टि का आधार है
हर रिश्ते का मूल है जो, जिससे
सारा संसार है
लेकिन अपनी क्रूर प्रवृत्ति का
शिकार उसको बना दिया
लड़की होना तो जैसे पाप हो कोई
जीवन ही उसका मिटा दिया
नौ महीने जिसने कोख में पाला,
उस मां ने ही कैसा सितम किया
निकाल अपने जिस्म से नाले में
उसको बहा दिया
निर्दयता की हर हद तब पार हो
जाती है
जब खुद एक औरत दूसरी
औरत की दुश्मन बन जाती है...