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Vandana Gupta

Romance

4  

Vandana Gupta

Romance

यादों ने दस्तक दी है

यादों ने दस्तक दी है

1 min
464


पूरा चाँद था उस दिन

जिस दिन हम मिले थे

याद है ना तुम्हें

और आसमाँ में आषाढ़ की 

काली कजरारी बदली छाई थी

जिसने चाँद को 

अपने आगोश में 

धीरे धीरे समेट लिया था

और चाँद भी 

बेफिक्र सा उसके

आगोश में सो गया था

जाने कब की थकान थी

जो एक ही रात में 

उतार देना चाहता था 


और उस सारी रात

हमने भी एक सफ़र

तय किया था 

दिलों से दिलों तक का

रूह से रूह तक का

जहाँ जिस्म से परे

सिर्फ आँखें ही बोल रही थीं 

और शब्द खामोश थे


पता नहीं क्या था उस रात में

ना बात हुई ना वादा हुआ

मगर फिर भी कुछ था ऐसा

कि जिसने मुझे आज तक

तुमसे जोड़ा हुआ है

शायद ...तुम भूल गए हो

मगर वो प्लेटफ़ॉर्म पर 

सुबह के इंतज़ार में 

गुजरती रात आज भी

मेरे वजूद में ज़िन्दा है

सुबह तो सिर्फ जिस्म

वापस आया था 

रूह तो वहीं तुम्हारी 

खामोश आँखों में ठहर गयी थी 


कभी कभी अहसास

शब्दों के मोहताज़ नहीं होते

और कम से कम 

पहली और आखिरी मुलाक़ात 

तो उम्र भर की जमा पूँजी होती है

शायद कहीं तुम भी आज 

उस मुलाकात को याद कर रहे होंगे

तभी आज इतने वर्षों बाद

यादों ने दस्तक दी है


उन आषाढी बूंदों में आज भी

भीग रही है हमारी मोहब्बत

इंतज़ार बनकर 


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