एक शहीद की गाथा
एक शहीद की गाथा
शौर्य दिवस पर इक गाथा मैं, सबको आज सुनाता हूँ।
इक शहीद के जीवन का मैं, परिचय आज कराता हूँ।
किसी गांव में इक बच्चे ने, सैनिक बनने की ठानी।
देश भक्ति का जज़्बा भी था, बालकपन की मनमानी।
इस जज्बे अरु मनमानी को, उसने हरदम ही पाला।
एक दिन उसकी मेहनत ने, सैनिक उसे बना डाला।
आँख खुशी से छलकी माँ की, जब देखी उसकी वर्दी।
सीमा पर वो डटा हमेशा, जितनी हो गर्मी, सर्दी।
घड़ी परीक्षा की अब आई, दुश्मन सर पर आ पहुँचा।
सबसे मुश्किल मोर्चे पर वह देशभक्त तब जा पहुँचा।
दुश्मन की टुकड़ी ने फिर जब, जमकर की गोलाबारी।
महाकाल बन टूट पड़ा वो, मौत भी उससे तब हारी।
अपने सुर्ख लहू में रँग कर, खेल रहा था वो होली।
आन बचाते हुए देश की, चार लगी उसको गोली।
क्या बतलाऊँ तुम सबको मैं, हिम्मत फिर भी ना हारी।
चुन चुन कर इक इक दुश्मन को, मारा था बारी बारी।
खत्म हुए जब दुश्मन सारे, काल प्रकट तब हो आया।
लेकिन उसके पहले उसने, वहाँ तिरंगा फहराया।
चलते चलते महावीर वो, साथी से कुछ बोल पड़ा।
कहना मेरी माँ से इतना, शेरों सा वह खूब लड़ा।
अपने बूढ़े माता पिता का, वो ही एक सहारा था।
अर्थी उसकी घर पहुँची तो, माँ ने बहुत निहारा था।
रोते रोते माँ ये बोली, तूने फर्ज निभाया है।
इस लहू से मेरे दूध का, तूने कर्ज चुकाया है।
इस गाथा को लिखते लिखते, आँखों से आँसू निकले।
बात कमल ये समझ गया है, देशभक्ति सबसे पहले।