शब्द
शब्द
बहती थी कभी
शब्दों की नदी
विलीन अब
अश्रु सागर में है
बूंद बूंद बरसती है
कविता
तृषित भावनाएँ लिये
ये ना कहो की
कलम तुम्हारी
मेरी काया में
कहीं है खोई
मैं बहती शुष्क सी
कांतिहीन कुरूप माया
तुम मधुर रस से
मैं तिक्त अनुभूतियाँ
विरह की ज्वाला में
विरक्त मेरी स्मृतियाँ
तुम शीतल चँद्र छाया
मैं चुभती ग्रीष्म धूप
तुम श्रृंगार रस हो
मैं विकार मन का साया
सुनो ..मेरी अर्चना
प्रेम है , बहता भाव अर्णव
तुम महाकाव्य रचना
तुम महाकाव्य रचना ।