एक प्रेम-कहानी
एक प्रेम-कहानी
प्यार अनोखा था उन दोनों का मैं कहता हूँ तुमसे,
था वो बंधन दृढ है कहानी सच है झूठी ना कसम से।
इतराती शरमाती बलखाती जाती मिलती उससे वो,
प्यार जताना था अपना पर कह ना पाई किस से वो।
मिल ही गया था सच्चा आशिक़ प्यार मोहब्बत सच्ची थी,
था उसका भी अपना संयम पर ना अब वो बच्ची थी।
आज था उसको कह देना मन में समाया सब वो प्यार,
ऐन वक्त पर ऐसी दुविधा आखिर बाजी गई वो हार।
जब वो पहुँची मिलने उस दिन उसके घर था मच गया शोर,
पता चला था उसको बाद में रात में आए थे कुछ चोर।
उनसे जमकर की थी लडाई उसके जान के प्यारे ने,
छीन लिया था उससे आशिक़ उसी समय हत्यारे ने।
रोती बिलखती पहुँची अपने घर वो बताने माँ को सच,
देखने आया था लड़का उसे कर दी विदाई बचा न कुछ।